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Hi, this is somebody who has taken the quieter by-lane to be happy. The hustle and bustle of the big, booming main street was too intimidating. Passing through the quieter by-lane I intend to reach a solitary path, laid out just for me, to reach my destiny, to be happy primarily, and enjoy the fruits of being happy. (www.sandeepdahiya.com)

Wednesday, June 7, 2023

लयों भाई भेड़ बकरी की शामत आयी

 पहलवानों को डरा धमकाकर और घटितकर मामले को रफा-दफा करने के बाद अब शक्तिशाली नेतृत्व ने किसान और कामगारों का रुख किया है. शाहाबाद हरियाणा में पुलिसिया डंडे से किसानो के सर फोड़े गए हैं. गुनाह ये था की वो अपनी सूरजमुखी की फसल के उचित दाम मांग रहे थे. गोदी मीडिया में एक सनकी ऐक्ट्रिस के मकान का छज्जा तोड़ने पर हफ्तों प्रलय जैसा सीन तो बनाया जा सकता है लेकिन अपनी खून पसीने की कमाई के उचित दाम मांगने पर उनके सर फोड़ने की घटना एक मामुली घटना है जिसको इग्नोर किया जा सकता है.  अब बात करते हैं इन किसानों के गुनाह की. सूरजमुखी का MSP 6400 रुपये है. सरकारी संस्थाओं ने खरीद से मना करके किसानों को प्राइवेट buyers को बेचने के लिए मज़बूत कर दिया. वहाँ उनको दाम मिला सिर्फ 4000 रुपये प्रति क्विंटल. अब बेचारा किसान प्रदर्शन तो करेगा ही.सो गुनाह हो गया, इससे देश की शक्ति कम होगी. ये भी बोल देंगे टुकड़े टुकड़े गैंग किसान आंदोलन चला रहा है. किसान नेता गुमनाम chaduni को जैल भेज दिया और अपने प्रिय यौन शोषण आरोपित बाहुबली को खुल्ले सांड की तरह छोड़ रखा है कि जाओ मौज करो सिर्फ वोट दिलाते रहना. वोट के लिए वादा किया काया था कि 2022 तक किसानों की आय दुगनी कर दी जाएगी. खर्चा तो दुगना हो गया लेकिन आय वहीं की वहीं है. किसान और मजदूरों को तो granted ले लिया गया है कि वो तो ऐसे ही मिट्टी में खेलने और पसीना बहाने के लिए बने हैं. आप में से बहुत सारे मित्र शहरी क्षेत्र के हैं इसलिए हो सकता है खेतीबाड़ी के बारे में हकीकत का पता ना हो. में गाँव में रहता हूं और जमीनी हकीकत से वाकिफ हू. ज़्यादातर सब्जियां आपको रीटेल में लगभग उसी दाम पर मिलती हैं. लेकिन हर सीजन यहां ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जब टमाटर, प्याज या और कोई सब्जी मंडी में कोई नहीं लेता. सड़ जाती हैं खेत में. अभी किसान भाई टमाटर को ठिकाने लगाने के अलग अलग तरीके अपना रहे हैं. मुझ जैसा छोटा मोटा लेखक जो खेती नहीं करता वो भी एक टमाटर का किसान लगता है. आए दिन कोई न कोई किसान दरवाजे पर टमाटर रख कर चला जाता है की भाई कूडे में फेंकने से तो अच्छा है. ये दर्शाता है कि फसल वितरण प्रणाली में कितनी खामियां हैं. ये सहाब तो भारत को विश्व गुरु बनाने पे तुले है इसलिए हम जैसे किसानों का क्या महत्व है. अपने अरबपति रसूखदारों के लिए कई लाख करोड़ कर्जा माफ़ करने से यों भारत की अर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ हो जाती है लेकिन किसानों को उनकी फसल का उचित दाम देने से भारत की इकोनॉमी मर जाएगी. ये इनकी सोच है. भारत का शीर्ष सत्ताधारी नेतृत्व एक ऐसी स्टेट से आता है जहां व्यापार और पूंजीवाद लगभग समाज का अभिन्न अंग है. इसमे कोई बुराई नहीं है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि किसान और मजदूर बस दबाने कुचलने के लिए है. अरबों खरबों के डिफाल्टरों को तो कर्जा माफ करके देश की उन्नती के सिपाही की तरह प्रस्तुत किया जाता है और किसानों को गुनाहगार. सिर्फ इक्का दुक्का चैनल ही होंगे जहां किसानों के सर फूटने की खबर चलाई गई होगी. बाकी सब तो मुह में थूक बिलों बिलों कर देश को विश्व गुरु सिद्ध करने में व्यस्त हैं.  सलीम अगर सुशीला को छेड़ दे तो हफ्तों मीडिया सनातन धर्म पे आए संकट के बादल को चिल्ला चिल्ला कर हटाने में लग जाती है और अगर एक हिन्दू बाहुबली हिन्दू ल़डकियों को परेशान करता है तो खामोशी छा जाती है. किसको पडी है, सभी व्यस्त हैं अपनी देशभक्ती सिद्ध करने में. बड़ा आसान है. धर्म नाम पर उन्माद मचाइये. विपक्ष को पप्पू पप्पू कह कर ठहाके लगाओ. कोई अगर सरकार को टोक दे तो उसे ग़द्दार गद्दार कहके नाच नाचो. बड़ा असान है आज कल इन्टरनेट देशभक्त बनना. और इन सबके बीच में जो लोग आपके लिए फल और सब्जी उगाते है अगर वो पीटे जाने हैं तो देशभक्त लोगों के लिए तो अनपढ़ gavar लोग ही तो पीटे हैं भेड़ बकरियों की तरह, क्या फर्क पड़ता है.

Tuesday, June 6, 2023

A sunny winter day

 

A sunny winter day and many an old bone wringing their hands in glee for being thawed by gently warm sunrays. There is some noisy, hardline rhetoric in the clump of trees. Sparrows, babblers, tailorbirds, pied starlings and the rufous treepie couple all raising very serious objections about someone. Dousing hours are shaken awake.

A cat is looking for breakfast, aptly following the trail of passion and pain in the natural scheme of mother existence. The visitor treepies have a dominating freewheeling chikr-chikr-chikr verbal pot-shots. All the local birds raise a hot rhetoric and defeat the transgressor. Cobwebs on its face, it comes back with a beaten expression. It then pauses near the latest occupant of the fragile dove nest. She has the patience to wait till the bird of peace is done with laying her eggs. As I have already said many times, the doves are extremely lazy. How do they even survive as a species on the crafty and tumultuous stage of life? It’s an incisively dug big question in my mind.

I have a self-styled bird-feed vessel. It’s a discarded clay pitcher’s mouth-ring. Put it on the wall and it turns a nice little basin to hold millets and grains for the birds. Little groups of sparrows are busy in it through the day. One sparrow loves picking little grains. But she loves scaring others even more. Let a fellow sparrow come near and she would jump and give an angry peck at its fur. When she is around, the rest of them wear a hassled look. Even a balding big male sparrow had to retreat under her chirpy attack. Then there was some noise and all of them scurried away including the quarrelsome one. Why fight with your own pals, especially when there are bigger dangers around?

One of the peacocks has a small plumage having shed its burden. It allows him surplus energy to see more of life beyond the routine obsession about impressing the peahens. It’s a free wayfarer now and takes off from one roof to the other in style. Its take off is preceded by a single, steel-straight, short and loud burst using all the vocal chords in its beautiful neck. As it flies to its destination, it goes sailing with shrieking notes of ayeoo ko-ko-ko-ko. It’s this sound that has scared away the sparrows.

Even with their unassuming dull brown color, the rockchats look at you very intelligently. The rockchat couple is really feeling at home in and around my house. They are a very comforting company for a bachelor struggling writer. Their presence is very unobtrusive. Their dull color won’t draw your attention. And despite their chatty name, they are usually very silent as they hop around the yard, garden and the verandah taking little picks of insects from the open platter of mother nature. Driven by curiosity, they give me company inside the rooms as well, as they sit on the ceiling fan and ponder over some strange things. Theirs is indeed a very friendly presence.

Monday, June 5, 2023

खूब लड़ी मर्दानी...

 गोदी मीडिया द्वारा अब एक झूठ का बवंडर उठाया जा रहा है. मुट्ठी भर भर के रेत उड़ाया जा रहा है ताकि पहलवानों के मामले का सत्य जमीन की रेत में मिल जाए और उनका बाहुबली सांसद जेल जाने से बच जाए और आने वाले चुनावों में अपने क्षेत्र से वोट दिलाए. इस मामले में दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पहले दिन से विवादास्पद रही है. जनवरी में उन्होंने FIR दर्ज करने से ही मना कर दिया. इसके बाद मननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रिपोर्ट दर्ज हुई. इसके बाद जांच के नाम पर न्याय के साथ ठगी हुई. महीनों तक दिल्ली पुलिस आरोपी को POSCO ऐक्ट से बचाती दिखी. POSCO और सैम्युअल harrasment केस में शिकायतकर्ता की पहचान गोपनीय रखी जाती है. लेकिन नाबालिग लड़की की पहचान सुनियोजित तरीके से उजागर कर दी गई. जरा सोचो एक लड़की की हालत. पूरा प्रशासन आरोपी को बचाने के लिए शिकायतकर्ता को ही आरोपी की तरह प्रस्तुत करने पर अमादा. ऊपर से समाज में तरह तरह की बातें. क्या दिल्ली पुलिस इसके लिए कौन जिम्मेदार है. तरह तरह के प्रलोभन, तरह तरह के दबाव और लास्ट में उसको बालिग सिद्ध करने की कोशिश. बहुत सारी अफवाहों का बवंडर की उस लड़की ने केस वापिस ले लिया. सत्ता से कौन लड़ सकता है? आज बजरंग पूनिया का ट्वीट आया है की मेडल को 15 रुपये का बताने वाले अब उनकी नौकरियों के पीछे पड़े हैं. क्या ये नौकरियां किसी की खैरात है? ये खून पसीने से अर्जित की गई हैं. अगर देश के सर्वोत्तम खिलाड़ियों के साथ ऐसा हो सकता है तो स्वाभाविक है आम आदमी को तो न्याय का सपना तक नहीं लेना चाहिए. न्याय मिलने में जितनी देरी होती है, झूठ की धूल बड़ी आसानी से सत्य को दबा कर उसका वध कर देती है. इस केस में भी ऐसा ही हो रहा है. मीडिया खामोश है. सिविल सोसाइटी दम दबा के देशद्रोही क़रार दिए जाने के डर से घर में दुबकी बैठी है. हर किस्म के अन्याय को देशभक्ति के आवरण से ढक दिया जाता है. प्रजा को धर्म का नशा करा के मदमस्त कर के छोड़ दिया जाता है. और न्याय के लिए महीनों से जो बेटियाँ संघर्ष कर रही थी उनको डरा धमका के पीछे हटने पर मजबूर कर दिया जाता है. मेरा एक सवाल उन महानुभावों से है जो इन आरोपों को झूठा मानते हैं. क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारा झंडा बुलंद करने वालीं हमारी बहन बेटियाँ ऐसा कदम उठाएंगी जिससे उनका पूरा करिअर खत्म हो जाए? क्यों वो इतने बड़े बाहुबली से सामना करके अपनी सालों की तपस्या को बर्बाद करेंगी? सत्य का तो सबको पता है लेकिन अब मुर्ख बनने की आदत सी हो गयी लगती है. मज़ा आता है अब मुर्ख बनने में. लेकिन दुख की बात है कि सत्य का एक बार फिर सत्ता ने दमन कर दिया. कम से कम में व्यक्तिगत तौर पर इस केस में जायदा आशा नहीं रखता. क्यूंकि सत्ता बहुत बलशाली है, खासकर शक्तिशाली नेतृत्व के नीचे. पुलिस का सारा फोकस किसी तरह POSCO ऐक्ट से बाहुबली को बचाने का है और मुझे विस्वास है वो इसमे सफल भी होंगे. रही बात दूसरे सैम्युअल harassment केस की तो उनकी समान्य धाराओं के तहत आरोपी को आराम से anticipatory bail मिल सकती है, वो भी जब अगर उसको गिरफतार करने की नौबत आती है तो. इसके अलावा जांच एजेंसी आरोपी को अरेस्ट ना करने का फैसला भी ले सकती हैं क्यूंकि non-posco सैम्युअल harassment केस जिसमें कारावास 7 साल से कम है वहां जांच एजेंसी सबूतों के अभाव में आरोपी को गिरफ्तार नहीं करने का फैसला कर सकती है. और होगा भी यही. ये है विश्व गुरु भारत के न्याय प्रणाली की कहानी. लेकिन मुझे गर्व है इन बहिनों पर जिन्होंने अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी. हार जीत का मामला दूसरा है.मुख्य चीज है ये बहन लड़ी तो. वर्तमान को तो दबाया जा सकता है लेकिन इतिहास कभी अन्याय नहीं करता. सच सामने आ ही जाता है.

Sunday, June 4, 2023

Cat jumping on Pa's head

 

It was almost like unleashing a tiger on one’s own father. This feral cat had this bad habit of littering at all the wrong places in and around our house. It was thus ordained that she was to be taken to stick as and when seen without losing any time.

I saw her sleeping under winter sunrays on the stone slabs overlooking the inner yard. Like a supreme predator, I stealthily picked a bamboo stick and poked at it quite forcefully from the railings above. It received quite a hard poke at its ribs that sent it out of its wits. Not having much clue about what to do, it jumped down in panic.

It was a beautiful day for sunbathing. Father had a close crop of his grey hair and had given a nice oil massage to his scalp that needed attention and pampering after weeks of lying hidden under his woolen cap. The idiotic cat landed straight on his philosopher’s head. Well, the cat took revenge for its fall. Father had scratch marks on his scalp. The act turned unpardonable even with the cat’s entire set of littering crimes.

‘You are good for perpetrating a self-goal only! Why didn’t you hit her in a way so that she landed anywhere on earth except my head?’ nursing his scratch marks, Father turned serious enough to settle a score from his side.

However, he was a kind man in every sense of the term. The instantaneous flare of anger was curbed, the red flame changed to a grumbling of some words about my foolishness, then to some stoic reflection, followed by some clandula ointment on his injuries. Then a book found him well absorbed in its pages. Father would forget all individual and collective miseries, even if there was a nuclear strike, as long as there was a nice book in his hands.

Thursday, June 1, 2023

The Mysterious Hawker

 

This particular hawker’s selling-call has been an enigma for months. It sounds superposed by inexpugnable traces of secrecy. I simply failed to make out what is his product or service. The drooling notes of insipid loquacity turned troublous enough to niggle at my curiosity. But by the time I would come out to check, he was gone.

In my estimation he could be anything from a trash-picker to a cloth seller. There is a dog in the neighborhood that howls in response to all moods and situations. Its character seems to be interwoven with indissoluble sinews of sadness and misery. Give him the best bone, he will howl painfully as a show of his obligation. Get him engaged to the most beautiful feline girl, he will express his gratitude through an even more piteous howling. In fact, it will howl even while at the top of a weaker dog in a fight. But it would forget its whimpering—eighth wonder—at the sounds of this hawker. Maybe the hawker’s speech leaves him confounded.

Then one fine day, I found out the secret. I was standing outside and was lucky to witness his few seconds of hawking spree before he vanished around the corner. It’s a vegetable seller pulling his rickshaw cart. There is the feeblest of auditory resemblance to aaloo, gobhi, matar, pyaj in a rumbling jumblement of jittery linguistics. I think even a Tahitian coming to the outer world for the first time in his life would do better in his first attempt at pronouncing Hindi words for vegetables.

There he was vanishing on his royal march as if the buyers have the obligation to run after and seek his blessings. I raised my hand and harked from behind. The dog that was having a break in howling to bark instead looked at me and reverted to his howling position as if complaining over something. The vegetable seller was gone without paying heed to my accost. The dog kept howling with its usual finesse.