पहलवानों को डरा धमकाकर और घटितकर मामले को रफा-दफा करने के बाद अब शक्तिशाली नेतृत्व ने किसान और कामगारों का रुख किया है. शाहाबाद हरियाणा में पुलिसिया डंडे से किसानो के सर फोड़े गए हैं. गुनाह ये था की वो अपनी सूरजमुखी की फसल के उचित दाम मांग रहे थे. गोदी मीडिया में एक सनकी ऐक्ट्रिस के मकान का छज्जा तोड़ने पर हफ्तों प्रलय जैसा सीन तो बनाया जा सकता है लेकिन अपनी खून पसीने की कमाई के उचित दाम मांगने पर उनके सर फोड़ने की घटना एक मामुली घटना है जिसको इग्नोर किया जा सकता है. अब बात करते हैं इन किसानों के गुनाह की. सूरजमुखी का MSP 6400 रुपये है. सरकारी संस्थाओं ने खरीद से मना करके किसानों को प्राइवेट buyers को बेचने के लिए मज़बूत कर दिया. वहाँ उनको दाम मिला सिर्फ 4000 रुपये प्रति क्विंटल. अब बेचारा किसान प्रदर्शन तो करेगा ही.सो गुनाह हो गया, इससे देश की शक्ति कम होगी. ये भी बोल देंगे टुकड़े टुकड़े गैंग किसान आंदोलन चला रहा है. किसान नेता गुमनाम chaduni को जैल भेज दिया और अपने प्रिय यौन शोषण आरोपित बाहुबली को खुल्ले सांड की तरह छोड़ रखा है कि जाओ मौज करो सिर्फ वोट दिलाते रहना. वोट के लिए वादा किया काया था कि 2022 तक किसानों की आय दुगनी कर दी जाएगी. खर्चा तो दुगना हो गया लेकिन आय वहीं की वहीं है. किसान और मजदूरों को तो granted ले लिया गया है कि वो तो ऐसे ही मिट्टी में खेलने और पसीना बहाने के लिए बने हैं. आप में से बहुत सारे मित्र शहरी क्षेत्र के हैं इसलिए हो सकता है खेतीबाड़ी के बारे में हकीकत का पता ना हो. में गाँव में रहता हूं और जमीनी हकीकत से वाकिफ हू. ज़्यादातर सब्जियां आपको रीटेल में लगभग उसी दाम पर मिलती हैं. लेकिन हर सीजन यहां ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जब टमाटर, प्याज या और कोई सब्जी मंडी में कोई नहीं लेता. सड़ जाती हैं खेत में. अभी किसान भाई टमाटर को ठिकाने लगाने के अलग अलग तरीके अपना रहे हैं. मुझ जैसा छोटा मोटा लेखक जो खेती नहीं करता वो भी एक टमाटर का किसान लगता है. आए दिन कोई न कोई किसान दरवाजे पर टमाटर रख कर चला जाता है की भाई कूडे में फेंकने से तो अच्छा है. ये दर्शाता है कि फसल वितरण प्रणाली में कितनी खामियां हैं. ये सहाब तो भारत को विश्व गुरु बनाने पे तुले है इसलिए हम जैसे किसानों का क्या महत्व है. अपने अरबपति रसूखदारों के लिए कई लाख करोड़ कर्जा माफ़ करने से यों भारत की अर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ हो जाती है लेकिन किसानों को उनकी फसल का उचित दाम देने से भारत की इकोनॉमी मर जाएगी. ये इनकी सोच है. भारत का शीर्ष सत्ताधारी नेतृत्व एक ऐसी स्टेट से आता है जहां व्यापार और पूंजीवाद लगभग समाज का अभिन्न अंग है. इसमे कोई बुराई नहीं है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि किसान और मजदूर बस दबाने कुचलने के लिए है. अरबों खरबों के डिफाल्टरों को तो कर्जा माफ करके देश की उन्नती के सिपाही की तरह प्रस्तुत किया जाता है और किसानों को गुनाहगार. सिर्फ इक्का दुक्का चैनल ही होंगे जहां किसानों के सर फूटने की खबर चलाई गई होगी. बाकी सब तो मुह में थूक बिलों बिलों कर देश को विश्व गुरु सिद्ध करने में व्यस्त हैं. सलीम अगर सुशीला को छेड़ दे तो हफ्तों मीडिया सनातन धर्म पे आए संकट के बादल को चिल्ला चिल्ला कर हटाने में लग जाती है और अगर एक हिन्दू बाहुबली हिन्दू ल़डकियों को परेशान करता है तो खामोशी छा जाती है. किसको पडी है, सभी व्यस्त हैं अपनी देशभक्ती सिद्ध करने में. बड़ा आसान है. धर्म नाम पर उन्माद मचाइये. विपक्ष को पप्पू पप्पू कह कर ठहाके लगाओ. कोई अगर सरकार को टोक दे तो उसे ग़द्दार गद्दार कहके नाच नाचो. बड़ा असान है आज कल इन्टरनेट देशभक्त बनना. और इन सबके बीच में जो लोग आपके लिए फल और सब्जी उगाते है अगर वो पीटे जाने हैं तो देशभक्त लोगों के लिए तो अनपढ़ gavar लोग ही तो पीटे हैं भेड़ बकरियों की तरह, क्या फर्क पड़ता है.
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