बेचारे राहुल गांधी को तो चुनाव आयोग ने बकरी बना रखा है. वो कुछ भी मिमिया दें तो एक डंडा मारते हैं उनके सर पर और दूसरी तरफ महाशक्तिशाली बाबा को खुले सांड की तरह छोड़ दिया गया है.. वह कुछ भी रांभ दें तो चुनाव आयोग भाग के अपने ऑफिस में घुस जाता है...अब आप ही समझिए ये संस्था किसकी है..बोलना मना है...🤐सिर्फ सुनो...किसकी? जो हमेशा मन की बात करते हैं😷
हमारे परिवार ने भी बरसों से कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखा है। आजादी से पहले दादा जी जमींदार लीग के समर्थक हुआ करते थे, और जहां भी कांग्रेसी लोग सभा करते थे, सीधे साधे किसान लोग जो आर्य समाज के अनुयायी और जमींदार लीग के समर्थक थे, कांग्रेसियों की पिटाई करते थे। दादाजी बताते हैं कि काई बार तो डर के मारे कांग्रेसी लोग टोपी सर से उतार कर जेब में छिपा लेते थे। उसके बाद पिताजी की भी यही धारणा रही। उसके बाद हम और उसके बाद हमारे बच्चे भी इसी खानदानी राजनैतिक सिद्धांत का पालन करते रहे हैं। चार पीढ़ियों से हमने हर किसी को वोट दिया है, सिर्फ कांग्रेस को नहीं दिया है। और अब 70-80 साल के पारिवारिक राजनीतिक इतिहास के बाद एक बहुत क्रांतिकारी कदम हम उठ रहे हैं। अबकी बार कांग्रेस को वोट देंगे। हालांकी हुडा सरकार ने मेरे साथ प्रांतीय सिविल सेवा के मामले में बहुत बड़ा अत्याचार किया था, लेकिन बाद में खट्टर सरकार ने भी कसार नहीं छोड़ी। खैर व्यक्तिगत मामलों को भूलते हुए देशहित में फैसला लेते हुए यही सोचा है कि अगर मीडिया की दासता, गैर लोकतांत्रिक मनमानी, संविधान को बदलने की साजिश, व्यक्तिगत आजादी, बोलने की आजादी, पढ़े लिखे आदमी की इज्जत, घृणा मुक्त समाज की रचना करनी है तो हमारी वोटों का कांग्रेस को समर्थन देना ही बनता है। यहीं हम कर सकते हैं। बाकी ज्यादा आशा तो नहीं है, क्योंकि जिस तरह से संस्थानों को जकड़ पकड़ लिया गया है, उस हिसाब से मैं चुनाव के नतीजों में ज्यादा आशा नहीं रख रहा हूं। फिर भी..
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